अंजान अगन है तु Poem by Dr. Ravipal Bharshankar

अंजान अगन है तु

अंजान अगन हैं तु, अंजाम तपन हूँ मैं
तेरी यादों के बादल घने घने, धुआं धुआं मन है

जाने ना तु मेरे दिल में, तेरी हस्ती क्या है
तेरे मेरे दरमियान एक, छोटी सी सजा क्या है
दो लफ़्ज एक मुस्कान हैं, जैसे जान पहिचान है
दिलों जान तेरी बस्ती में, पहिचान कैसी उलझन है

जाने जां तु मेरे दिल में, युँ ही बेवजह है
तेरा मेरा रिश्ता जैसे, सिने में कलेजा है
दो जिस्म एक जान है, जैसे जान परवान है
दिलों जान तेरी मस्ती में, निर्वाण जैसी सुलझन है

(डॉ. रविपाल भारशंकर)

Monday, December 29, 2014
Topic(s) of this poem: love
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