ये दिल परेशान सा है| Poem by Vinit Kumar

ये दिल परेशान सा है|

समंदर की लहरें उफान पर थीं,

एक समंदर दिल के अंदर भी है |

काग़ज़ पर उसे उतार नही पाता,

बेग़रज़ जवानी भी तूफान में है |



तुम्हारे होने को कबसे बेक़रार बैठा है,

निगाहें दूर उस पार तुम्हारी तलाश में है |



तुम हो तो मैं हूँ,

वरन मेरा होना भी बेकार सा है |



इश्क़ की लहरें बढ़ती हीं जाती हैं,

कोई सुनामी शायद इसके ख्याल में है |



सूखी प्रथाओं के बेजान दरख़तों से,

इस सुनामी को कुछ इन्तेक़ाम सा है |

ये दिल बड़ा परेशान सा है |

ये दिल बड़ा परेशान सा है |

Wednesday, March 14, 2018
Topic(s) of this poem: hindi,love
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