गीत Poem by Shobha Khare

गीत

जब सावन मे मेघ बरसते
घनीभूत हो जाती राते
पत्ता पत्ता करने लगता
मुझसे विरह व्यथा की बाते


विरह तुम्हारा प्रकट हो रहा है
नाना रूपो मे घर घर मे
सुख दुख, मिलन विछोह
वासनाप्रेम, हर्ष मै, डर मे

मेरा हृदय मे विषण बनाता
हुआ, चतुर्दिख डोल रहा है
विरह तुम्हारा विगलित हो कर
गीत स्वरो मे बोल रहा है II

Tuesday, May 5, 2015
Topic(s) of this poem: life
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success