माँ Poem by KAUSHAL ASTHANA

माँ

माँ
उदासी ने मुझे घेरा
तुम्हारी याद आयी है
नयन फिर बन गए सावन
घटाएँँ उमड़ आयी है
करूं किससे हृदय की बात
जीवन अब घुटन लगता
नहीं दिखता सुखद आँचल
जहां बरसों छुपायी है
तुम्हारा टोकना फिर भी
हमेशा देर से आना
प्रतीक्षा में सदा तुम जाग
थपकी दे सुलायी है
किया उत्सर्ग जीवन
वेदना को पी लिया तुमने
नहीं दी टूटने कोई कड़ी
रिश्ते निभाई है
नही भूखा कभी सोया
तुम्हारे पास आकर मै
भुला अपनी सभी पीड़ा
मुझे लोरी सुनायी है
कभी चिंतित मुझे देखा
तुम्हारी आँख भर आयी
समाहित कर दुखों को दिल में
माँ तू मुस्करायी है
...............कौशल अस्थाना

Monday, May 18, 2015
Topic(s) of this poem: mother
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