तेरी आरजू Poem by Shobha Khare

तेरी आरजू

दिल भी वीराना हो गया लेकिन
अब भी है तेरी आरजू इसमे
हम सितम से भी खुश है ए जालिम

वह सितम कोई लुत्फ हो जिसमे
तुम परआशिक न हो तो किस पर हो
तुम मे जो बात है वह है किसमे II

Wednesday, May 27, 2015
Topic(s) of this poem: life
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