तू मेरा अश्क़ बन सीने की कशक बनके
क़्यू रहती हो पलकों तले, क़्यू हां
मेरा जहां सा बनके तन्हाइयो का समा सा बनके
क़्यू ठहरती हर रोज यहाँ, क़्यू हां
हम खुद से परेशान है जब से
जग से हैरान है कब से
ज़रा मुड़ के तू आजा ना
यूँ तन्हा छोड़ के ना जाना
हम खफा नहीं है तुमसे हम जुदा नहीं हैं
जो अलफ़ाज़ तुमने गाये थे कल
सुन लाये जब गुजर रहे थे पल
तू मेरे जहां का खुदा है जाना
तुम बिन नहीं मेरा कोई निशां ओ जाना
यूँ रूठके गये क़्यू थे तुम
जब संभलने को कह गये ओ जाना
तनहा साये में डूबा मेरा दिल
कुछ भीगी पलकों से सुना तू जाना
ज़रा मुड़ के तू आजा ना
यूँ तन्हा छोड़ के ना जाना
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem