फिर से कहो Poem by Suhail Kakorvi

फिर से कहो

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फिर से कहो:
इश्क़ की करदी है तुमने इन्तिहा फिर से कहो
जो कहा तुमने बहोत अच्छा लगा फिर से कहो

याद अब हमको नहीं इंकार या इक़रार था
अपना वो जुमला कि जो था दूसरा फिर से कहो

बात कैसी कह गए लेकिन तुम्हारी बात है
क्या कहा तुम हो बहोत ही बावफा फिर से कहो

ताकि क़त्ले आरज़ू का हमको हो जाये यक़ीं
तुम अदा कर दोगे इसका खू बहा फिर से कहो

लफ्ज़ मीठे बोल कर क़िस्सा सुनाया कौन सा
कौन सा चक्खा है तुमने ज़ायक़ा फिर से कहो

आतशे सोज़े मोहब्बत से तो मैं जलता रहा
इसको सुन कर दिल तुम्हारा क्यों जला फिर से कहो

ज़िक्रे मय से पाएंगे हम अब नया कैफो सुरूर
तुमको पीने से जो आया है मज़ा फिर से कहो

आज रोज़े हश्र है सारे इकट्ठा हैं गवाह
कल जो छिप कर कह दिया था बरमला फिर से कहो

ज़िन्दगी बर्बाद होना भी है हुस्ने ज़िन्दगी
बात ये भी खूब है जाने वफ़ा फिर से कहो

जो सुनाई थी कहानी ज़ुल्फ़ और रुखसार की
बादे सुब्हे दिलकुशा वो माजरा फिर से कहो

क्या सबक लोगे सुहैल-ऐ -इश्क़ परवर से भला
बात कैसी कह रहे हो दिलरुबा फिर से कहो


इन्तिहा=चरम, जुमला =वाक्य, खू बहा=हर्जाना, आतशे सोज़े मोहब्बत =प्रेम की आग, ज़िक्रे मय =शराब का उल्लेख, कैफो सुरूर =नशे का आनंद, रोज़े हश्र =प्रलय, बरमला =खुल कर कहना, ज़ुल्फ़ और रुखसार=गाल और केश, बादे सुब्हे दिलकुशा=सुबह की दिल खोलने वाली हवा, सुहैल-ऐ -इश्क़ परवर =इश्क़ को पालने वाला स्वयं कवि

फिर से कहो
Sunday, August 2, 2015
Topic(s) of this poem: love and friendship
COMMENTS OF THE POEM
Ajay Kumar Adarsh 18 August 2016

bahut hi sundar gazal likha hai aapne suhail sir...

0 0 Reply
Rajnish Manga 27 October 2015

आपकी गज़लें कमाल की हैं और अदब की दुनिया में अज़ीम मुकाम रखती हैं, सुहैल साहब. मेरी ओर से मुबारकबाद और शुक्रिया क़ुबूल फरमाएं. आपकी ग़ज़ल का यह शे'र बतौरे-ख़ास quote कर रहा हूँ: ज़िन्दगी बर्बाद होना भी है हुस्ने ज़िन्दगी बात ये भी खूब है जाने वफ़ा फिर से कहो

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Suhail Kakorvi

Suhail Kakorvi

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