A-216 अंग अंग का Poem by Amrit Pal Singh Gogia

A-216 अंग अंग का

A-216 अंग अंग का 3.12.16—9.27 AM

अंग अंग का अपना ही काम है
छोटा हो बड़ा हो एक समान है
एक अंग भी रूठ जाए तो देखो
सारा शरीर बन जाता बेजान है

ज़िन्दगी भी अंग के ही समान है
हर इन्सान का अपना निर्वाण है
कोई कम और ज़्यादा नहीं होता
सब की अपनी अपनी पहचान है

परिवार भी ज़िन्दगी के समान है
हर सदस्य की अपनी पहचान है
माता पिता हर घर की धरोहर हैं
बच्चे फुलवारी भगवन समान हैं

सदस्य का अपना अपना काम है
काम से उनकी अपनी पहचान है
रिश्ते भी बनते उनका भी स्थान है
सबकी ज़िम्मेवारी ही कराधान है

एक भी सदस्य गर चूक जाए कहीं
जीना हो जाता बिलकुल हराम है
सब अपने अपने काम करते रहें
वही ज़िन्दगी है और वही धाम है

वही ज़िन्दगी है और वही धाम है
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Poet: Amrit Pal Singh Gogia

A-216 अंग अंग का
Tuesday, December 6, 2016
Topic(s) of this poem: motivational,relationships,responsibility
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