A-277 हँसते हँसते Poem by Amrit Pal Singh Gogia

A-277 हँसते हँसते

A-277 हँसते हँसते 29.5.17- 4.50 AM

हँसते हँसते कह जाते हैं हर वो बात
नहीं कहनी थी पर बन गयी उलझन
वही फँसी होती उलझन में हर रात
एक पुरानी तस्वीर व छोटी सी बात

हँसते हँसते कह जाते हैं हर वो बात
उसी पुरानी उल्फ़त में फँसे जज़बात
नींद को भी इल्म नहीं है उलझन की
बस उड़ जाती है लेकर वो सवालात

कसकते दिल को कर देती है बदनाम
न मिलता शकून और न मिले आराम
दर्द दिल का उठ के गुहार करता फिरे
नहीं मिलता फिर भी कहीं कोई विराम

करना चाहता वो मुकम्मल अपनी बात
चले आते हैं जज्बात भी कुछ खिलाफ
दिल के कोने में रखे हैं जो चन्द लम्हें
आती है पुरानी बात बन एक हवालात

इतनी पाक हो जाये हर वो मुलाक़ात
दर्द भी बनकर आये, आये हसीं रात
दर्द न आये तो सुख की क्या बिसात
वर्ना कौन पूछे सुख के हसीं जज़्बात

Poet: Amrit Pal Singh Gogia "Pali"

A-277 हँसते हँसते
Sunday, June 25, 2017
Topic(s) of this poem: love and friendship,motivational,relationship,responsibility
COMMENTS OF THE POEM
Akashdeep Singh Sidhu 07 July 2017

Awesome lines sir

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