Aatnk Me Hai Bharmour Sara Poem by milap singh bharmouri

Aatnk Me Hai Bharmour Sara

आतंक में है भरमौर सारा
आतंक है जंगली रीछों का
कैसे रहे निर्भय हम
कोई समाधान बताओ इन जीवों का

घर की छत पर आ जाते है
खूब खाते है मक्की और सेबों को
लोग डर -डर के जी रहे है घर में
कोई अकेला जाता नही खेतों को

कितने ही लोग घायल किये है
अपने ही घर के आंगन में
हाल क्या कर देंगे यह उनका
गर गया हो कोई जंगल में

क्या यह अचानक पनप पड़े है
या छोड़ दिए है कहीं ओर से जंगल वालों ने
जो भी हो कारण इसका पर
हो रहा है खिलबाड़ इंसानी जानों से

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