Aazadi Poem by Kumar Mohit

Aazadi

Rating: 5.0

' कंट-जड़ित माला से, जब श्रृंगार हुआ था;
एक बहुभाषीय देश में, भीषण नरसंघार हुआ था;

जब जन्मे तब एक साथ थे, खेले तब भी एक साथ थे;
खेत हमारे आस-पास थे, नदी और नाले साथ-साथ थे;
गन्ने तेरे गुड़ मेरा था, सरसों तेरी साग मेरा था;
चरती तेरी गायें जिसमें, हरा-भरा वो खेत मेरा था;
तेरी होली रंग मेरा था, ईद मेरी और संग तेरा था;
मन मुरीद जिससे हो जाए, आव-भगत का ढंग तेरा था;
कपड़े मैंने तेरे पहने, खाना तूने मेरा खाया;
भिन्न पंथ के होने पर भी, खुदा ने हमको ख़ूब मिलाया;
पर पता किसे था दिन ऐसा भी, वो हमको दिखलायेगा;
सदा चहकता पिंड मेरा ये, लाशों से पिट जाएगा;
छोटी-छोटी गलियों में तब, लहू-सरिता का अविरल संचार हुआ था;
कंट-जड़ित माला से, जब श्रृंगार हुआ था;
एक बहुभाषीय देश में, भीषण नरसंघार हुआ था;

हाथ अगर थे, सर गायब था;
कहीं बदन से, पैर गायब था;
तिरछी नज़रें, जँहा से आती;
नुक्कड़ वाला, घर गायब था;
खेत तो थे, पर फसलें जल गयी;
घर की नाली नदियां बन गयी;
बड़-बड़ करती, 'बूढ़ी काकी';
घर की एक, दीवार पे टंग गयी;
सुबह-शाम हर दरवाज़े से, केवल क्रंदन-गान हुआ था;
कंट-जड़ित माला से, जब श्रृंगार हुआ था;
एक बहुभाषीय देश में, भीषण नरसंघार हुआ था; '

Sunday, January 18, 2015
Topic(s) of this poem: Pain
COMMENTS OF THE POEM
Akhtar Jawad 19 January 2015

We both were equally responsible for this mishap. Although it was a policy of the third ruling power-divide and rule. Now we are helpless and no alternate is left except a peaceful coexistence and friendship. Your poem is heart touching................10

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