आखिर प्यार क्या है (Akhir Pyar Kya Hai) Poem by Nirvaan Babbar

आखिर प्यार क्या है (Akhir Pyar Kya Hai)

क्या सोचा है कभी, कि आखिर प्यार क्या है,

प्यार अगर सोच है तो, इस सोच का विस्तार क्या है,
प्यार अगर दर्द है तो, आखिर इसका उपचार क्या है,
प्यार अगर धरा है तो, इस धरा का आकाश क्या है,
प्यार अगर आकाश है तो, इस आकाश का श्रीतिज क्या है,
प्यार अगर अंतरिक्ष है तो, इस अंतरिक्ष का विस्तार क्या है,

साम है याँ दाम है ये, दंड है याँ भेद है,
संसार का अज्ञान है याँ ज्ञान का ही भेद है,
ह्र्दय का इक भाव है याँ, ह्र्दय का ये खेद है,
खोज है ये हमारी, याँ, हमको ख़ुद से करता ये विछेद है,
सेज है ये अरमानों की याँ, जलती चिता की सेज है,

मेल है ये दो दिलों का, याँ दिलों को करता ये, बे- मेल है,
रेत है ये समय की, याँ, ख़ुद समय की रेल है,
किनारे से टकराती मौज है, याँ, ख़ुद समंदर की तफ्सील है,
ये चाँद की है चांदनी याँ, ख़ुद चाँद की तामीर है,
ये ज़िंदज़गी की है तमन्ना, याँ, मौत की तारिक़ है,

निर्वान बब्बर

All my poems & writing works are registered under
INDIAN COPYRIGHT ACT,1957 ©

POET'S NOTES ABOUT THE POEM
All my poems & writing works are registered under
INDIAN COPYRIGHT ACT,1957 ©
COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success