बात बनती दिखाई देगी...Baatbanti Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

बात बनती दिखाई देगी...Baatbanti

बात बनती दिखाई देगी

मैंने कहा ' साथ ही जीएंगे'
तुम ने कहा ' साथ ही मरेंगे '
मुझे लगा नैया पर हो गयी
पर यह क्या 'नई मुसीबत ले आयीं'

कभी कहती हो ' मुझे साथ ले चलो'
और पलकों में कायम से बिठालो
मेरे पांव धरती पर रुकते नहीं
आह भरते भरते थकते नही

पर क्या हो जाता है?
कभी कभी मन मर जाता है
तुम्हारा ये केहना 'में छोड़ चली जाउंगी'
मुड़कर ना देखूंगी और वापस ना कभी आउगी।

'वापस ना आउंगी' आंसू ला देता है
रात में वीरान मन को खुब सताता है।
में करू आजीजी 'कभी छोड़ के मत जाना'
यदि किया ऐसा जुल्म तो फिर मेरा मुंह कभी ना देखना।

तुम सिर्फ हंस देती हो
वचन खुछ भी नहीं देती हो
में भौचक्का सा रेह जाता हूँ
मन मे सिर्फ आह भर पाता हुँ।

मुझे आशिक़ बंदा नही हमसफर चाहिये
हम होंगे जीवनरथ के दो पहिये
हम मिलकर खिनेंगे जीवन को डोर
फ़िर नैया लगा देंगे उस छोर।

मैंने सोचा बात तो सही है
प्यार का मतलब यह हरगिज़ नहीं है
सिर्फ वासना से काम नहीं चलता
सिर्फ प्यार की बातों से पेट नहीं भरता।

जिंदगी बसर करनी है तो मेहनत करनी होगी
एक दुसरे के प्रति समान सोच रखनी होगी
उसकी रूचि को अपनी समझ कर अपना नी होगी
तभी तो प्यार की आड़ मे बात बनती दिखाई देगी

बात बनती दिखाई देगी...Baatbanti
Thursday, March 17, 2016
Topic(s) of this poem: poem
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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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