Band Honth Aatma Ki Abhwiyakti Poem by Suhail Kakorvi

Band Honth Aatma Ki Abhwiyakti

व्यथा और चिंता का चरम
प्रकृति का वरदान आंसू
ऐसा लगा मन का बोझ हल्का हो रहा है
होंठ बंद हैं और ख्याल भटके हुए हैं
उम्मीदें विलीन हो चुकी हैं
बरसों गुज़र गए जबसे कुछ नहीं कहा है
दिल का दुश्मन मुझे यादों के साथ अकेला छोड़ गया है
मेरे एकांत में यादें मुझे कचोट रही हैं
वो लम्हा मौत पा जाता है लेकिन उसका पुनर्जन्म हो जाता है
वो लम्हा जो मुझे खुशियों और मस्ती से वंचित कर गया
वही बिंदु बन गया है जहाँ से हीरे पिघल कर आँखों से बह रहे हैं
और धूल बेदर्दी से उनका इन्तिज़ार कर रही है।

Saturday, May 2, 2015
Topic(s) of this poem: love and loss
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