बंजर है ज़मीं (Banjar Hai Zami) Poem by Nirvaan Babbar

बंजर है ज़मीं (Banjar Hai Zami)

बंजर है ज़मीं, बस बंजर है,
ये दिल की ज़मीं, बस बंजर है,

ढूंढने हम चले, फिरदोस ख़ुदा,
क्या मिला था हमको? , क्या मिला? ,

तारे जग के, सब तोड़ेंगे,
ये सोचा था मगर, ख़ुद ही टूट गया,

पाँओं मैं छाले, कर बैठे,
टूटे - टूटे, ख़ुद को ही, कंकर पत्थर, हम कर बैठे,

टोटे - टोटे, रूह हुई,
हवाओं मैं हवा, हम बन बैठे,

अब देख ना, मेरे, दिल के ज़ख़म,
नासूर उन्हें हम, कर बैठे,

निर्वान बब्बर

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Sunday, April 6, 2014
Topic(s) of this poem: life
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