चाँद लगे सुनेहरा Chand Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

चाँद लगे सुनेहरा Chand

चाँद लगे सुनेहरा


दिल का चोर
मचाये खूब शोर
अपने ही घर
उसे जैसे लगे 'बेघर'

पता नहीं क्यों?
बार बार ज्यों
मन में भय सताता
उसका दूर हो जाने का बिचार खूब डराता।

सानु की फरक पेंदा?
मैंने भी सोच लिया सदा
यह ठीक रहेगा यदि बोल दिया जाय
एक धक्का जोर से दिया दिया जाय।

प्यार क्या रास्ते में पड़ा है?
एक आवारा सा लड़का बेचारा खड़ा है
मने में आस लगाए मंझिल को देखता
जमीं में नाख़ून गड़ाए खोदता।

बार बार कल्लू का चेहरा
लगाकर एक छद्मधारी मोहरा
हंसती रहती है खीलखिलाकर
जैसे मेरो को मारने की कोशिश करती है बाण लगाकर।

मै भी हूँ तैयार
दफ़न होने को मेरे यार
मर भी जाएंगे तो क्या होगा?
एक और मझनू का नाम जुड़ जाएगा।

दिल का चोर
मचाये खूब शोर
अपने ही घर
उसे जैसे लगे 'बेघर'

पता नहीं क्यों?
बार बार ज्यों
मन में भय सताता
उसका दूर हो जाने का बिचार खूब डराता।

सानु की फरक पेंदा?
मैंने भी सोच लिया सदा
यह ठीक रहेगा यदि बोल दिया जाय
एक धक्का जोर से दिया दिया जाय।

प्यार क्या रास्ते में पड़ा है?
एक आवारा सा लड़का बेचारा खड़ा है
मने में आस लगाए मंझिल को देखता
जमीं में नाख़ून गड़ाए खोदता।

बार बार कल्लू का चेहरा
लगाकर एक छद्मधारी मोहरा
हंसती रहती है खीलखिलाकर
जैसे मेरो को मारने की कोशिश करती है बाण लगाकर।

मै भी हूँ तैयार
दफ़न होने को मेरे यार
मर भी जाएंगे तो क्या होगा?
एक और मझनू का नाम जुड़ जाएगा।

पर काला सा चेहरा तेरा
दिल हरे मेरा
हर दिन ले प्रतीक्षा मे नाम और साँस ले गहरा।
वोहो ही तो है प्रेम का दुसरा नाम जब "चाँद लगे सुनेहरा" ।

चाँद लगे सुनेहरा Chand
Sunday, August 6, 2017
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 06 August 2017

welcome kumar hindu Like · Reply · 1 · Just now

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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