Cheelam Bharate The चीलम भरते थे कभी Poem by S.D. TIWARI

Cheelam Bharate The चीलम भरते थे कभी

चीलम भरते थे कभी, अब भर रहे गिलास
हुक्का बुझा काका का, बोतल आई रास
बोतल आई रास, खुलती हरेक दिन शाम
चौधरी काका अब, पीकर पाते आराम
बदला समय के संग, अब चौपाल का सिस्टम
पुरातत्व की वस्तु, बन गये हुक्का चीलम

Wednesday, June 17, 2015
Topic(s) of this poem: lifestyle
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