Childhood Poem by amit yadav

Childhood

Rating: 3.5

एक बचपन का ज़माना था, खुशियों का खज़ाना था,
चाहत चाँद को पाने की, दिल तितली का दीवाना था
खबर न थी कुछ सुबह की, न शाम का ठिकाना था,
थक हार के आना स्कूल से, पार्क खेलने भी जाना था,
पापा का मुझसे गुस्सा होना, लेकिन आइस क्रीम के लिए उन्हें मनाना भी था,
दादी की कहानी थी, परियों का फंसना था
पानी में कागज़ की जहाज़ थे, हर मौसम सुहावना था.
हर खेल में साथी थे, हर रिश्ता निभाना था..
गम की जुबान न थी, न जख्मो का पैमाना था.
रोने की वजह न थी, न हँसने का बहाना था.
याद आते वो दिन तो आँखों में आंसू आ जाते
पर क्या करे मेरे दोस्त हमे भी कहीं दूर जाना था....

Friday, July 18, 2014
Topic(s) of this poem: love
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amit yadav

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