दंगल.. Dangal Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

दंगल.. Dangal

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दंगल
बुधवार, १५ जनवरी २०२०

संसार एक जंगल है
पूरा का पूरा दंगल हैं
लेकिन कायदे से बाधित है
हर चीज़ सम्बंधित है।

कितना ही जुड़ाव क्यों ना हो!
कितना ही लगाव क्यों ना हो!
हमें यहाँ ही रहना है
अपनी दुनिया मैं हीविचरना है।

ना उसको कोई नियंत्रित कर पाया है
और ना ही हमने इजाजत दी है
अपना ख्याल है और अपनी दुनिया
इसी को तो कहते है माया!

ना किसी ने यहाँ महात्मा बनना है
और ना ही उपदेश देना है
सदियों सेपर यूँ कहो की उत्पति होने
और आजतक हमने संवारे है अपने कोने।

संसार यूँही चलता रहेगा
अपने आप महेकता रहेगा
कोई सुनहरा फूल संसार को मोहित कर देगा
अपनी छाप पीछे छोड़ कर चला जाएगा।

ये संसार का नियम है
और उसपर दुनिया कायम है
दिल अंदर से मुलायम है
जो भी करना है शुभस्य शिग्रम है।

हसमुख मेहता

दंगल.. Dangal
Tuesday, January 14, 2020
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 14 January 2020

ये संसार का नियम है और उसपर दुनिया कायम है दिल अंदर से मुलायम है जो भी करना है शुभस्य शिग्रम है। हसमुख मेहता

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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