हमें नहीं चाहिए.. Hame Nahi Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

हमें नहीं चाहिए.. Hame Nahi

हमें नहीं चाहिए

हमें नहीं चाहिए बड़ी बड़ी इमारतें
जहाँ पनपती हो नफ़रतें ही नफ़रतें
न कोई आदमी आपसे बोलते
ओर नहीं कभी हँसते। हमें नहीं चाहिए

हमें सीखना है
कैसे आगे बढ़ना है?
लोगो से बहस नहीं करना है
बस अपनों को गले लगाना है. हमें नहीं चाहिए

हमें क्या लेना है यदि कोई कहे राम?
बस हमें नहीं करना है दूसरों की नींद हराम
हमने वादा करना है रहीम से
हमें कोई सरोकार नहीं है मातम से। हमें नहीं चाहिए

रखेंगे अपने आप अलग उन बहकावे से
जिस से ना हो पहचान अलग से
भारत माँ के बच्चे है हम दुलारे
सब को कहते है हम है प्यारे। हमें नहीं चाहिए

करेंगे सब झगडे आज से समाप्त
हो जाएगा सब को ज्ञात
ना कोई नफरत ना कोई गीला
सब को बोला सलाम जब भी प्यार से मिला। हमें नहीं चाहिए

कह दो उन सबसे जो हमें अलग कर रहें है
मजहब की दिवार खड़ी कर रहे हैं
जब वो अलग नहीं तो फिर दोज़ख़ क्या और जन्नत क्या?
जब रहना हमें यहाँ है तो फिर कुछ भी बोलना क्या? हमें नहीं चाहिए

हमें नहीं चाहिए.. Hame Nahi
Tuesday, September 13, 2016
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 13 September 2016

कह दो उन सबसे जो हमें अलग कर रहें है मजहब की दिवार खड़ी कर रहे हैं जब वो अलग नहीं तो फिर दोज़ख़ क्या और जन्नत क्या? जब रहना हमें यहाँ है तो फिर कुछ भी बोलना क्या? हमें नहीं चाहिए

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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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