मनुष्य का अंत (Hindi) Poem by Rajnish Manga

मनुष्य का अंत (Hindi)

Rating: 5.0

धरती का औसत तापमान बढ़ रहा है
ग्लेशियर पिघल रहे हैं
कहीं पे त्रस्त लोग हैं निम्न तापमान से
पस्त कहीं भीषण गरमी से
महासागरों का जलस्तर बढ़ रहा है
खतरे में हैं जलचर
समुद्र के नीचे कोरल व वनस्पति
पेड़ कटते जा रहे हैं
धरती पर छाये वन घटते जा रहे हैं
पशु पक्षी प्रजातियाँ
बहुत तेजी से विलुप्त होती जा रहीं हैं
पर्यावरण का संतुलन
आज दसियों साल से बिगड़ता ही जा रहा
मनुष्य यदि संभल सके
प्रकृति इसे आज माफ़ कर भी सकती है
मगर जो देर हो गयी
तो प्रकृति के नाश में मनुष्य का भी नाश है.

Thursday, February 7, 2019
Topic(s) of this poem: world,coldness,environment,global,marine,ocean,summer,winters
COMMENTS OF THE POEM
Dr Pintu Mahakul 15 February 2019

पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है। दोनों ध्रुवों में बर्फ पिघल रही है। इसलिए, समुद्र का स्तर बढ़ रहा है। यह बहुत खतरनाक है। इससे विनाश हो सकता है। प्रिय कवि, आपने अद्भुत कविता लिखी है। इससे जागरूकता आ सकती है। इस कविता को साझा करने के लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूं। पूरे दस अंक देते हुए मैं आपको सम्मानित करता हूं।

1 0 Reply
Rajnish Manga 15 February 2019

उक्त कविता की इतनी अच्छी समीक्षा करने और इस विषय पर आपके विचारों ने भी पर्यावरण असंतुलन की समस्या की गंभीरता को उजागर किया है. आपकी उत्साहवर्धक टिप्पणी हेतु आपका हार्दिक धन्यवाद, मित्र.

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Me Poet Yeps Poet 14 February 2019

ENGLISHIZE THIS PLEASE MY MOM'S SMILES HAS RETURNED TO MY BEST POSITION NO ONE ALL YOUR GOOD WISHES RM ji

2 0 Reply
Rajnish Manga 14 February 2019

Thanks for your kind visit and suggestion. I hope to post its English version shortly.

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