Hindi Haiku 10 Oct Poem by S.D. TIWARI

Hindi Haiku 10 Oct

मैं नहीं होता
निर्लज्ज मेरी इच्छा
नंगी हो जाती

इतना धुआं
पीकर भी चिता में
इत्ता सा धुआं

नशे का आदी
दिन के प्रकाश में
काली यामिनी

चाँद तारों को
दुशाला में लपेट
जहाँ भी देख

निकले तुम
लगाकर के इत्र
छींक आ गयी

प्रातः सुदूर
पूरब में उठता
आग का गोला

चमक रहे
अम्बर में बिखरे
इतने हीरे
कितना अच्छा होता
एक मेरा भी होता!

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