जगत हम को तात कहता है Jagat Hame Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

जगत हम को तात कहता है Jagat Hame

जगत हम को तात कहता है

हम तो वहां ही रुक गए
बस अपने आप को महसूस करते रह गए
लिखा था मेहनत करना तो करते गए
हमारे पुरखो ने वो ही किया और हम भी वही करते चले गए।

मेह्नत से हमें गिला नहीं
कम मिला ज्यादा ऊसका शिकवा नहीं
हमारी कीस्मत से देश बुलंद हैँ
पर हम बून्द बून्द के प्यासे हैं।

न लो हमारा इम्तेहान
हम है आम इंसान
ज्यादा हम बोलते नहीं
और बोलते है तो फिर थकते नहीं।

किस्मत से हम बन्धे है
आँखों से हम अंधे है
जगत हम को तात कहता है
पर कौन हमारी बात सुनता है।

हमने नहीं किया कीनारा
और नहीं लिया कोई नारा
बस गुजरे है दिन मस्ती और ख़ुशी के संग
अब तो पहचानो हमारे रंग।

जगत हम को तात कहता है Jagat Hame
Sunday, August 21, 2016
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 21 August 2016

Niraj Tomar बहुत सुंदर प्रणाम See Translation Unlike · Reply · 1 · 33 mins

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Mehta Hasmukh Amathalal 21 August 2016

Saba Rahil Saba Rahil bahut achchi kavita...... Unlike · Reply · 1 · 33 mins

0 0 Reply
Mehta Hasmukh Amathalal 21 August 2016

हमने नहीं किया कीनारा और नहीं लिया कोई नारा बस गुजरे है दिन मस्ती और ख़ुशी के संग अब तो पहचानो हमारे रंग।

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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