(kavita) - सम्भव है सब कुछ असम्भव कुछ भी नहीं Poem by Prabodh Soni

(kavita) - सम्भव है सब कुछ असम्भव कुछ भी नहीं

सम्भव है सब कुछ
असम्भव कुछ भी नहीं
कर होसले बुलंद
दूर कुछ भी नही

सिन्धु को लांघ, सुमेरु को उलांघ
दम पे अपने पाताल को छान
कर बुलंद मन और बुलंद हो खुद
चलते जा बढते जा तू रोके से ना रुक

सम्भव है सब कुछ
असम्भव कुछ भी नहीं
हो होसले बुलंद तो
दूर कुछ भी नही

उदित होता सूरज नव उमंग लिए
बड़ता जाता हर पल नव तरंग लिए
तू भी भर अनंत प्रकश उर्जा नभ (gagan) अपने अन्दर (sab prachand)
आगे बड बढता जा नव प्रसंग लिए

सम्भव है सब कुछ
असम्भव कुछ भी नहीं
कर होसले बुलंद
दूर कुछ भी नही

कोई नही जीतता हारे बिना
कोई नही मरता जिए बिना
तू भी कर कार्य कोई अनंत असम्भव मुश्किल
पा अमरता तू भी मरे बिना

सम्भव है सब कुछ
असम्भव कुछ भी नहीं
कर होसले बुलंद
दूर कुछ भी नही

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