कितनी संगदिल है मेरी चाहत
दिल को पहुंचाती नही मेरे राहत
हर हंसी से नजर मिलाते हो
देखी है मैंने तेरी भी शराफत
प्यार पर शक करना मोहबत में
हुस्न की यारो है पूरानी आदत
तेरी हरकतें में सब पहचानती हूँ
दिल में कालिख बातों में हलावत
सिर्फ इक बार इनायत कर दे
फिर उम्रभर करूंगा तेरी इबादत
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem