कितनी विडम्बना Kitni Vidambnaa Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

कितनी विडम्बना Kitni Vidambnaa

कितनी विडम्बना kitni vidambnaa

कुछ तो राहत दीजिये
धीरे से दरवाजे पर आहट तो दीजिये
मन की अधिराई कम हो जायेगी
'बस आप आ गए' इसीका मनोमन आनंद पायेगी। कितनी विडम्बना

ख़ुशी का माहौल छाया है
आपका पैगाम भी आया है
बस एक चीज़ का गम छाया है
'कब मिलोगे एकबार' इसीबात पर रोना आया है। कितनी विडम्बना

दिल कभी कभी सोचता रहता है
मानव जीवन में कितनी विडम्बना है
कभी मिलन तो कभी बिछड़ना है
"बस दिल को काबू में रखो" फिर भी रोना है। कितनी विडम्बना

मिलनसार है स्वभाव हमारा
हमने आपको खूब पहचाना
पर ये क्या हो गया?
जमीं पर भूचाल क्यों आ गया? कितनी विडम्बना

सूरज का तपना सहज है
आपका रुआब दिखाना महज एक अंदाज़ है
हम तो बस सिर्फ प्यार में डुबे रहते है
'आप के नयनो में' बहती गंगा का आभास करते रहते है। कितनी विडम्बना

हम भी बह जाएंगे सागर की तलाश में
हर गली, हर शहर पूछते जाएंगे आप की आस में
कहीं से तो मिले गा आपका अता पता?
बस उसी से हो जाएगा ख़त्म हमारा रास्ता। कितनी विडम्बना

कितनी विडम्बना Kitni Vidambnaa
Sunday, October 9, 2016
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 10 October 2016

xwelcoem k reddy Unlike · Reply · 1 · Just now 32 minutes

0 0 Reply
Mehta Hasmukh Amathalal 09 October 2016

aqdas majeed Unlike · Reply · 1 · Just now 1 hour ago by hasmukh amathalal | Reply

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Mehta Hasmukh Amathalal 09 October 2016

xwelcome randhir kaur Unlike · Reply · 1 · Just now 1 hour ago

0 0 Reply
Mehta Hasmukh Amathalal 09 October 2016

हम भी बह जाएंगे सागर की तलाश में हर गली, हर शहर पूछते जाएंगे आप की आस में कहीं से तो मिले गा आपका अता पता? बस उसी से हो जाएगा ख़त्म हमारा रास्ता। कितनी विडम्बना

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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