मैं एक वृक्ष का, सूखा पत्ता हूँ,
तेज़ पवन के झोकें से, टूट धरा पे आ गिरा,
कभी इधर गिरा, कभी उधर उड़ा,
मैं बे - सहारा सा, हो गया,
किसी ने हाथों से मसला,
तो किसी ने पैरों से कुचला,
कभी नहाया मैं नदिया में,
कभी नालों में नहाना पड़ा,
मुझे जलाया अग्नि मैं,
जब सफाई वाले को, पड़ा मिला,
राख़ हुआ मैं षण भर मैं,
मिटटी में - मैं, फिर पड़ा मिला,
फिर तेज़ पवन के झोंके से,
इक बीज, मेरी गोद मैं आ गिरा,
फिर राख़ में मेरी, वो पनपा,
मेरी मदद से फिर वो, वृक्ष बना,
फिर गिरा, कहीं पे इक पत्ता,
संसार हमेशा, कुछ ऐसे चला,
निर्वान बब्बर
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