मोहे बचपन छोड़ा जाए रे (Mohe Bachpan Choda Jaye Re) Poem by Nirvaan Babbar

मोहे बचपन छोड़ा जाए रे (Mohe Bachpan Choda Jaye Re)

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नैना तीर भयो रे मोरे, पी को, मन ही मन रिझाएं रे,
मो ने काजल लियो लगाए, सजन रे, मोहे लाज भी है, आए रे,

सोक (शौक) बड़े, सिंगार बड़ा रे, मोहे बचपन छोड़ा जाए रे,
अब चाहूं दर्पन, माथे कि बिंदिया, अब लाली मोहे, भाए रे,

जियरा मोरा, बेचैन भया रे, भीतर से निकला जाए रे,
धरती मोहे अब ना भाए, आकास (आकाश) मैं उड़ना चाहूं रे,

मोरी साँस दीवानी, मैं हुई बांवरी, मन कहे, मैं बरखा बन छिट जाऊं रे,
साथ - सखी, सब बंधन झूठे, सजन दर, मुझको भाए रे,

मोहे अब कुछ भी ना भावे, भूख, प्यास मोहे खाए रे,
घड़ी मिलन की कब आएगी, मोरा जियरा, मोहे सताए रे,

ज्ञान, मान, संस्कार मैं भूली, बस पी की मैं हो जाऊं रे,
छलक रहे, मोरे नयन बावंरे, मिलन की आस जगाएं रे,

निर्वान बब्बर

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