निभाना है दोस्ती Nibhana Hai Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

निभाना है दोस्ती Nibhana Hai

निभाना है दोस्ती

निभाना है दोस्ती
और करना है मौजमस्ती
बस मिटाना नहीं है अपनी हस्ती
और दोस्ती को नहीं बनाना है सस्ती। निभाना है दोस्ती

खुब लूटेंगे मौज का दरिया
तब दूर होंगी दूरिया
लगेगा जब जिया तो क्या जिया?
मन को अपने आप ही मार दीया। निभाना है दोस्ती

लोग छींटाकशी करेंगे
हम उसे सूना ही करेंगे
मन पर उसका बोझ नहीं लेंगे
समय आने पर निर्णय सही ही करेंगे। निभाना है दोस्ती

सही चिंतन और सही मार्ग
यही होगा हमारे जीवन का स्वर्ग
सीढ़ियां होंगी चढ़ने और उतरने के लिए
हम पीछे नहीं हटेंगे जीने मारने के लिए। निभाना है दोस्ती


खुब लूटेंगे मौज का दरिया
तब दूर होंगी दूरिया
लगेगा जब जिया तो क्या जिया?
मन को अपने आप ही मार दीया। निभाना है दोस्ती

दोस्ती है दूसरा नाम खुदा का
वचन देने का और वादे का
निभाना इसकी तासीर होगी
बस यह जोड़ी फिर तस्वीरे-इ- मिसाल होगी।

निभाना है दोस्ती  Nibhana Hai
Sunday, September 11, 2016
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 11 September 2016

दोस्ती है दूसरा नाम खुदा का वचन देने का और वादे का निभाना इसकी तासीर होगी बस यह जोड़ी फिर तस्वीरे-इ- मिसाल होगी।

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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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