निखरा निखरा पाएंगे Nikhra Nikhara Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

निखरा निखरा पाएंगे Nikhra Nikhara

निखरा निखरा पाएंगे

यादों से लिपटी तेरी हरकत
बज़मे ही समजा उसकी नजाकत
नहीं नसीब होती हर के भाग्य
मे समजू मेरा नसीब और सौभाग्य।

तस्वीर बनती नहीं चेहरा भी सामने आता नहीं
कमबख्त दिन भी कटता नहीं
अफ़सॉस यही है की मन कही लगता नही
बार बार मन में आता ओर रूलाता यही।

उस जन्नत का नजारा क्या होंगा?
तेरी चाहत का दुसरा नाम क्या होंगा?
मुझे पता नहीं संसार मे और क्या क्या होंगा
बस मेरा मक़सद तो तुजी को पाना होंगा।

में पास ही तो हूँ बस नजरकर लो
अपनी आंखोमे युही समाके देख लो
दुनिया के सब रंग सामने आएंगे
चेहरे की रौनक को निखरा निखरा पाएंगे

निखरा निखरा पाएंगे Nikhra Nikhara
Sunday, February 7, 2016
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 08 February 2016

Sam Bajwa Shukeriya Unlike · Reply · 1 · 6 hrs

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Mehta Hasmukh Amathalal 07 February 2016

में पास ही तो हूँ बस नजरकर लो अपनी आंखोमे युही समाके देख लो दुनिया के सब रंग सामने आएंगे चेहरे की रौनक को निखरा निखरा पाएंगे

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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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