पियु मारो गयो परदेस..piyu maro gayo Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

पियु मारो गयो परदेस..piyu maro gayo

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पियु मारो गयो परदेस

पियु मारो गयो परदेस
जियो ना लागे मारो इस देस
तडपु में बिन थारे इस वेश में
पड गयी हु दिल से पशोपेश में

घर में न लगे दिल ना बहार में
सब से उब गयी इस करारी हार में
न कभी सोचा था मिलेगी ऐसी विरानियाँ
कोस रही होगी मेहलोकी भी महारानोयाँ

काले काले बादल आसमान में गरज रहे है
विनती मेरी और अरज सुन भी रहे है
बिजली का काम है मुझको डराना
गम को बढ़ाना और दिल को गभराना

मे संवर भी रही हु और खुश भी हूँ
दिलकी बात किसको बताती भी हु
मुझे नाराजगी इस बात की नहीं है
राणाजी मेरे से दूर है यह भी तो हकीकत है

चल हवा धीरे से तू बहक ले
भीनी भीनी खुश्बू से हलकी महक ले
बिन बरसात गमो की बोछार
में मनाउ उसे जैसे लगे त्यौहार

राणाजी कब आओगे वापस अपने देस?
मै तो मरी मरी जाउंगी देखकर आपका भेस
कानाजी मुरली से मैंने क्या लेना?
आप से बस सुनना है रागनी का गाना

लगता नहीं दिल अब कई कई दिनॊ से
आप जो दूर रहे हो जोजन और मिलोसे
मैंने भी सफ़र कर ही लिया अपने मन की दृष्टि से
कैसी सुहानी रही आपकी याद इस सृष्टि से

में आत्म विभोर हो गयी
जब सुनी काली काली भाषा किशोर से
खो गयी सपनो की दुनिया मे इस कदर
जैसे टुकड़ा मिल गया हो छेदकर जिगर

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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