Prem Geet Poem by sanjay kirar

Prem Geet

प्रिय तुम्हारी दृष्टि ने जब मेरी ओर निहारा,
मैं जैसे अवाक रह गया बन गया दास तुम्हारा।

जीवन के ताप लिये मैं तो खड़ा हुआ था रण में,
लेकिन तुमने नज़रों से ताप हर लिये इक क्षण में।
प्यासे अधरों को मिला हो जैसे जल का मात्र सहारा,
मैं जैसे अवाक रह गया बन गया दास तुम्हारा॥

मेरी सारी करुण कथाएँ रागों ने आ-आकर चूमीं,
सारी कवितायें सरल हो गई जैसे ही तुमने छूली।
कला पक्ष के साथ भाव पक्ष का भी मिला किनारा,
मैं जैसे अवाक रह गया बन गया दास तुम्हारा॥

Saturday, February 21, 2015
Topic(s) of this poem: love
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