Sonch- Sonch, सोच- सोच Poem by Gautam kumar

Sonch- Sonch, सोच- सोच

सोच- सोच
क्या सोच यह अनमोल है, या जीवन का यह मोल है, तुम सोच कर यह सोच लो फिर उस सोच से कुछ बोल दो! इस सोच सोच के जज्बे में हेर एक सोच इठलाता है, हर एक सोच जाने कहाँ किस ओर लिए चला जाता है! कहने को यह सोच प्रबल है लेकिन यह दुर्बल अधीन हो जाता है जब मानव अपने लक्ष्य से दूर कही रह जाता है!
कभी संगीन कभी गमगीन तो कभी रंगीन समां दिखलाता है, यह सोच जाने कहाँ हमें किस ओर लिए चला जाता है! कभी निर्बल कभी सबल तो कभी प्रबल हमें बनता है, यह सोच न जाने हमें क्या क्या दिन दिखलाता है! लेकर यह कभी सिखर पे जाता है, कभी दूर से ललचाता है, कभी बयार्थ ही बहलाता है तो कभी जीवन रह दिखता है! यह सोच हमें कभी दुनिया से दूर ले जाता है, कभी जीवन सार चखता है, तो कभी मौत की नींद सुलता है! आओ इस सोच के सोच से हम खुद को आजाद करें, हम सफल स्वच्छ फरयाद करें, अपना जीवन आबाद करें!

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Gautam kumar

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