The Cellular Consciousness Poem by Sanjeev Kumar

The Cellular Consciousness

ना बदलेगी तस्वीर,
चाहे बदल डालो,
कोशिकाओं की तकदीर.

एक चादर पड़ी है,
उठा कर तो देखो,
रखा है बड़े ख्याल से,
इसे प्रकृति ने अपने पास.

आखिर उसने ना बताया,
क्या बना अच्छा?
क्या बना बुरा?

जो बना वो सना,
सूरज के सात रंगों से,
धरती पानी आकाश,
और वायु के, अंतरंगो से;

जो ना दिखा, ना मिला,
जिसे सब जड़ समझे,
वो तो चेतन था.

POET'S NOTES ABOUT THE POEM
Cellular Fate is so Deterministic.

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Copyright © 2012 Sanjeev Kumar
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Sanjeev Kumar

Sanjeev Kumar

Jamshedpur, India
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