Tilchatte Ka Mahabharat (Hindi) तिलचट्टे का महाभारत Poem by S.D. TIWARI

Tilchatte Ka Mahabharat (Hindi) तिलचट्टे का महाभारत

तिलचट्टे का महाभारत

गृहिणी ने चटनी पीसने को
जैसे ही उठाया बट्टा
रेंगता हुआ चला आ रहा था
उधर से एक तिलचट्टा।
तिलचट्टे को देखकर
गृहिणी की चीख निकल पड़ी
मगर वह बहादुर थी
हिम्मत से लड़ने चल पड़ी।
बट्टा हाथ में था ही
आव देखा न ताव
झट से चला दिया
करने को अपना बचाव।
यदि लग जाता तो
उसी की चटनी बन जाती
पूरी गृहिणी जाति और
तिलचट्टों में ठन जाती।
तिलचट्टा होशियार था
तेजी से एक ओर हो गया
गृहिणी के कोलाहल से
वहां पर शोर हो गया।
वॉर खाली गया
गृहिणी ने उठा लिया चिमटा।
तिलचट्टा बचने के लिए
थोड़ा सा सिमटा।
उसने गृहिणी की ओर
देखकर उसे घूरा।
तो उसने भी उठा लिया
अपने हाथ में छूरा।
फिर तो झाड़ू बेलन
थाली गिलास कटोरा
यहाँ तक कि बड़ों का अस्त्र
चम्मच तक नहीं छोड़ा।
तिलचट्टा निहत्था था
मगर बचाव तो करना था।
वरना गृहिणी के हाथों
तत्काल ही मरना था।
गृहिणी घबराकर पीछे हटी
जब कीट वहां से उछला
इतने में एक दरार में
छुपने का अवसर मिला।
गृहिणी की तीक्ष्ण नज़रों ने
उसको खोज लिया।
और अर्जुन की भांति
अनेकों बाण झोंक दिया।
वह चलाये जा रही थी
निरंतर बाण पर बाण।
कृष्ण के सिवा कोई अन्य
नहीं बचा सकता था प्राण।
तिलचट्टा भीष्म पितामह की तरह
अस्त्र त्यागे तटस्थ खड़ा था।
धैर्य व संयम की मूर्ति बने
अपने ही स्थान पर अड़ा था।
अर्जुन बाणों की वर्षा किये जा रहे
चम्मच बाण] बेलन बाण।
चलनी बाण] कटोरी बाण
छननी बाण] बट्टा बाण।
बाण पे बाण छोड़े
पर सब बेकार हो रहे थे।
जैसे इच्छा मृत्यु का वरदान लिए
भीष्म खड़े डकार ले रहे थे।
दरार का कवच पहने
सभी अस्त्र हो रहे बेअसर।
गृहिणी थकती जा रही थी
आक्रमण करने से निरंतर।
थकान के मारे गृहिणी
आवेश त्याग शीत हो गयी।
थोड़ी देर तो लगा कि
तिलचट्टे की मीत हो गयी।
पर अविलम्ब ही वह
फिर से आवेश में आई।
शांत हो होकर पुनः शुरू जैसे
इजराईल फलिस्तीन की लड़ाई।
यह तो शुक्र था उसके पास
नहीं थे रासायनिक हथियार।
वरना संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबन्ध का भी
कत्तई ना करती परवाह।
अर्जुन से परास्त न हुआ तो
वह भीम बन चली।
अपने पैरों तले कुचलने
शीघ्रता से आगे बढ़ी।
तिलचट्टा थोड़ा और भीतर होकर
उसकी ओर देखा।
अरे नारी! तू क्यों बनी है
चंडी की लेखा।
मैंने तेरा क्या बिगाड़ा
जो मेरे प्राण लेने को तुली।
मेरा भी रसोई पर अधिकार है
इस बात को क्यों भूली।
अनायास ही मुझे देखकर
तू आवेश में आई।
मैं तो छुपने का स्थान ढूंढ रहा था
जब तूने बत्ती जलाई।
मैं सद्दाम की शेरवानी में छेद कर आया
ओबामा की टटोल आया हूँ झोली।
अरब की खाड़ी में भी लड़ चुका हूँ
तू किस खेत की है मूली।
अब भी ना तू शांत हुई तो
रात में हिस्स की ध्वनि निकालूंगा।
तू चैन से कैसे सोती है
तुझे मैं रात को ही बताऊंगा।
धमकी सुनकर तो
महिला का क्रोध और भड़का।
हाथ लग जाता तो लगा देती
फौरन कड़ाही में तड़का।
महिला बहादुर थी
आसानी से हार मानने वाली नहीं।
ठहर जा बच्चू तुझे तो देखूंगी
हिट लाती हूँ कल ही।
गृहिणी पसीने में
बुरी तरह भीग गयी थी
बरसात के नमक की तरह
एकदम से पसीज गयी थी।
दाहिने हाथ से माथे का पसीना
पोंछते शयन कक्ष को चली
सिंदूर बहने से मुंह लाल
मन में हार की खलबली।
हाथ में त्रिशूल होता तो
फ़ौरन ही कर देती वध
चाहे महिसाषुर आ जाता
या सामने होते मधु कैटभ।
फोन उठाया, नंबर दबाया
पति को दे डाला आर्डर
शाम को जब भी आना
हिट लेकर ही आना घर।


(C) एस० डी० तिवारी

English version:

http: //www.poemhunter.com/poem/a-fight-with-cockroach/

Saturday, January 2, 2016
Topic(s) of this poem: hindi,humour
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