वर्ना घूंसे और लात लाता है Varnaa Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

वर्ना घूंसे और लात लाता है Varnaa

वर्ना घूंसे और लात लाता है

कमी दोनों जगह थी
उसकी कुछ वजह भी थी
कहते है प्यार कहकर नहीं होता
हो जाय तो उसमे जुठ भी नहीं होता।

खूब कसमें खाते है हम
कस्मे वादे खब देते है हम
ये नहीं सोचते अमीर गरीब का मेल नहीं होता
एक पूरब है तो दुसरा पश्चिम का सोचता।

दिल के अरमान चकनाचूर होने लगते है
चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगती है
आसमान जैसे जहर उगल रहा होता है
बात बात में झगड़ा होता रहता है।

प्यार की मानो हवा निकल जाती है
तू तू में सारी रात युही निकल जाती है
सुबह की किरण का बड़ी बेसब्री से इंतजार होता है
'कैसे अलग हो जाना' उसका ही इंतजाम होता है।

प्यार मानो था ही नहीं
थातो खांली सपना ही
जो दूध में उफान की तरह आया
और अपने आप ही बैठ गया।

भावुक होना गलत बात नहीं
हर बात में कुर्बानी देना शहादत नहीं
हर चीज़ का एक समय होता है
प्यार इसी बीच अडिग सा परबत होता है।

नजदीकियां अपने आप बन जाती है
गलतफैमियों अँधेरे की तरह मीट जाती है
सुबह का उझाला नया पैगाम लाता है
करलो समजौता वर्ना घूंसे और लात लाता है

वर्ना घूंसे और लात लाता है Varnaa
Thursday, April 28, 2016
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 28 April 2016

नजदीकियां अपने आप बन जाती है गलतफैमियों अँधेरे की तरह मीट जाती है सुबह का उझाला नया पैगाम लाता है करलो समजौता वर्ना घूंसे और लात लाता है

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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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