Vartamaan Sthti Poem by sanjay kirar

Vartamaan Sthti

वर्तमान स्थिति
कुछ उबलता रहा, जलता रहा
कहाड़ों मे फुदकता रहा,
आह! कैसी पीड़ा,
कैसा पोच
तार तार हो जाता हू,
कुछ पल येसा सोच
मन का संघर्ष जारी है
ये कैसी महा 'भारत' है,
हर ओर कौरव है,
पांडवो पर न कोई जिम्मेदारी है
किसे उपदेश सुनाते 'कैशव'
अर्जुन को समय निगल गया
जो कुछ शेष बचा
वो कहाड़ों मे पिघल गया
अभिमन्यु को अभी ज्ञान नहीं है,
सुरक्षा का ध्यान नहीं है
सब कहाड़ों मे जलता बुझता
धुआँ धुआँ है
बस धुआँ धुआँ है
अंदर भी बाहर भी बस धुआँ धुआँ है

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