Waah! Baadal Tune Kya Khel Dikhaya Poem by Pawan lubana

Waah! Baadal Tune Kya Khel Dikhaya

पसीने से लतपत हुआ,
सड़्क पर चल रहा.
सूर्ज महाराज की गर्मी सहता,
मैं चल रहा.

म्नज़िल अभी दूर थी,
सूर्य का केहर था
हालत मेरी बुरी थी,
ना जाने कितना चलना था.

कहीं से वह काले बाद्ल आए,
ठंडी हवा साथ लेकर आय.
गुड़-गुड़, गुड़-गुड़ की धुन गाए,
पानी की वह बूंदे टपकाए.

अब सूर्ज ना दिखाई दिया,
वह डर कर कहीं छिप गिया.
मैं खुशिओ से झूमने लगा,
वाह! बाद्ल तूने कया खेल दिखाया.

अब बारिश से लतपत हुआ,
घर को जा रहा.
ममी जी की डाँट सहता,
कपड़े अपने धो रहा.....

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