Wazir Poem by Abhaya Sharma

Wazir

कुछ सफेद कुछ काले है
कुछ प्यादे हैं कुछ मोहरे है
आठ गुना इस आठ वर्ग पर
चलनी तुमको अब चाले हैं!

नियमबद्ध होकर रहना है
जो जैसा है वैसा चलना है
हाथी सीधा ही जा पायेगा
और ऊंट चलेगा तिरछी चाल

घोड़ा लंगड़ा ढ़ाई चलेगा
पर सबको वह टाप सकेगा
है वज़ीर की बात निराली
सीधा तिरछा चल सकता है!

प्यादे जो गिनती में आठ है
राह रोकते हैं दुशमन की
पहले वो दो घर चल सकते है
एक घर तिरछा वार करेंगें

राजा है सबसे शक्तिवान
यह सारा खेल उसी का है
शह मिलने पर हो किसी तरह
हर हाल मे मात बचाना है

गर शतरंज खेलना है तुमको
समझो दिमाग दौड़ाना है
कैसे कैसे हो दांव पेंच
राजा को कोई ना पाये भेद

बाजी कुछ ऐसी बिछी दिखे
दलबल हो सबल बढ़े आगे
अवसर मिलते ही वार करो
हर वार पे प्रत्यावार करें

मैदान साफ तय होना है
ताकत एक प्यादे की है पर
गर पहुंच गया दुश्मन के घर
उसको वज़ीर बन जाना है ।

अभय शर्मा
अमिताभ बच्चन, फरहान अख्तर, अदिति राव हाय्द्री, नील नितिन मुकेश और जॉन अब्राहम अभिनीत कल रिलीज होने वाली फिल्म वज़ीर को प्रोत्साहन प्रदान करने हेतु यह कविता 7 जनवरी 2016 को लिखी गई है ।

Wednesday, January 20, 2016
Topic(s) of this poem: chess
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Abhaya Sharma

Abhaya Sharma

Bijnor, UP, India
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