विजेता (Winner) Poem by Pawan Kumar Bharti

विजेता (Winner)



बिना देखे ऊँचाई जो पर्वत पे चढ़ जाते हैं!
घबराते नही ज़रा भी वो आगे बढ़ जाते हैं! !
गिरते तो क्योंकि सब हैं, गिरने का क्या है!
विजेता वे ही होते हैं जो गिर के संभल जाते हैं! !
परिस्थितियाँ और लोग भले कुछ करने नही देते!
मगर हौंसले उनके सपनों को मरने नही देते! !
अनसुलझी गुत्थियों के भी हल निकल जाते हैं!
विजेता वे........
कीचड़ मे कमल होते हैं, कहलाते गुदड़ी के लाल!
अपने हाथों से करते हैं, नित वो नये कमाल! !
कर्मठ हो तो लिखे हुए भी भाग्य बदल जाते हैं! !
विजेता वे.......

Wednesday, May 21, 2014
Topic(s) of this poem: victory
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This poem is about the characteristics of a real winner, who can change the things as per his will.
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