आस्था
निर्मल हिमखंडों के बीच से अवतरित गंगा,
सदियों से हमारी आस्थाओं को संभाले है।
आज भी शाम के धुंधलके में,
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यात्रा प्रकृति की
रात्रि का प्रथम पहर,
नदी किराने सरकंडों के झुंड,
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लाडला बिगड़ा नहीं
सामने जो खड़ा है पेड़ आम का
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सांझ का सूरज
सांझ के सूरज को देखा
वो घबराया-घबराया सा लगा।
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आमिया पर झूले
पढ़ते थे अमिया पर झूले
अब नदारत वो हो गये।
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इंसानी चट्टानें
एक जहां मैंने भी देखा है,
सड़क के उस पार नाले की तलहटी में।
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निर्मोही पतझड़
मौसम अंगड़ाई ले रहा,
आहट गर्मी की हो रही।
सर्दी का आतंक,
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