रात भर चाँद तारे एक-दूजे को देखते रहे,
न तारों में एक ने कहा, न कुछ चाँद ने कहा।
सागर में दिन -भर हम आज तरँग गिनते रहे,
उन सभी का सागर समाने का बस उमँग रहा।
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सुबह हो या शाम,
दिन हो या रात,
घड़ी हो या पहर,
मैं तेरा, बस तेरा,
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हे री गोरी! कहाँ चली तू,
कर पूरा साज श्रृँगार ।
सुभग बसन आभूषण साजे,
चमकते-दमकते उरहार।।
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रघुबर! तुमसे बढ़कर, तेरा नाम,
हम रटते रहते तेरा नाम बार-बार।
सँत भक्त हित अवतार धारे तुमने,
सहे वन -गमन, सीता-विरह तुमने,
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हर घर हर चौराहे हर कोई नाम तेरा लेता,
लेकिन आज तक मुझे दिखा न पाया कोई।
ऐसी क्या खामियां रहती बसती तुझमें सदा
नहीं बताना चाहता दरवाजा भी तेरा कोई।।
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