लिखने-पढ़ने में मन नहीं लगता, Poem by Dr. Navin Kumar Upadhyay

लिखने-पढ़ने में मन नहीं लगता,

मुझे अब लिखने-पढ़ने में मन नहीं लगता,
कुछ कहने-सुनाने में भी अब जी नहीं करता,
लगता है, तू मुझे देखे औ मैं तुझको देखता रहूँ,
तेरी गोद, सिरहाने बनाने सिवा भला नहीं लगता।

Monday, November 13, 2017
Topic(s) of this poem: love
COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success