शान औ शाम में बस तनिक अँतर, Poem by Dr. Navin Kumar Upadhyay

शान औ शाम में बस तनिक अँतर,

शान औ शाम में बस तनिक अँतर,
एक दोपहर दूजा सँध्या के लिए,
अनुनासिक योगीजनों के ध्यान हेतु,
मकारान्तक भक्तजनों का सव^स्व ।

Tuesday, November 14, 2017
Topic(s) of this poem: love
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