हे श्रीकृष्ण! हे श्री केशव! हे श्री माधव प्यारे ।
राधे चित्त गति धीर धरत नहिं, नहिं सहि जात मुरारे।
विरहाकुल राधा कहँ लागत, पल पहाड़ सम प्यारे ।
भूषण पाहन सम लागत, मलय वात वह्नि सम जारे।
उसाँस वायु अनिल सम दाहत, काम अनल बहु तारे।
नयन कमल अँसुवन ढारत, विगलित प्रबल नाल करारे।
विरह नैन पावक सम भासत, सोहत न कुसुम सेज सँवारे।
करतल राखि कपोलन हेरत, चहुँ दिशि निरखत प्राण प्यारे।
आनन बाल चँद्र इव भासत, जिमि अरुण चन्द्र मतवारे।
लागत प्राण अब का रखनो, निशि बासर नाम रटे रसना रे।
हे हरि! बेगि कृपा करिए, 'नवीन' दरशन देहु आनँद भवना रे।
जयदेव रचित विरह वण^न लखि, राधा रसिक जन होत सुखारे।
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basudev sarvam iti.joy shree krishna.well written. bahut accha likha.83446