सप्रेम विनय करत श्यामसुन्दर Poem by Dr. Navin Kumar Upadhyay

सप्रेम विनय करत श्यामसुन्दर

सप्रेम विनय करत श्यामसुन्दर,
कियो राधे चन्द्रमुखी कँठ आगे।
शीश भूषण खिसक गयो अरुझि,
आलिंगन मिल्यो प्रियतम प्रेम पागे।।
वँशी नाद धुनि बज रहे निरँतर,
परम मगन सनेह सुधा भाव अनुरागे।
कवि जयदेव कटाक्ष कृपा नित,
'नवीन' नित्य विहार चाहत मुँहमाँगे ।।

Saturday, March 18, 2017
Topic(s) of this poem: love
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