प्यारी! हम आये तेरे द्वार, दे दे हे लली दीदार।
कछु भी कहौ तुम, मोहि बहु भावत,
दन्तावलि लखि मम दुख भागत,
आनन चन्द्रबिम्ब सम लाजत,
तव अधर सुधा मोहि ललचावत,
अकारण कोप तजहु अब सुन्दरी,
हम मुख कमलन पर बलिहार, दे दे हे लली दीदार।
जो है सुदँते, प्रिये आहत तन,
कर ले मेरा आलिंगन बन्धन,
नखक्षत सों करु मर्दन तन,
मोर अधरन दबावहु निज दँतन,
नेकु निज नयनन ले निहार, दे दे हे लली दीदार।
हे प्रिये! तुम मेरी जीवन प्राणा,
मेरो हिय अलँकार प्रधाना,
तुम मेरी हो सदा सानुकूला,
हिय सदा तव प्रेम भाव भूला,
अनुदिन बढ़त रहै प्रेमधार, दे दे हे लली दीदार।
तव नयन सुनील वण^धारी,
कोप प्रभाव अरुण रतनारी,
काम प्रभाव नयन रँग आये,
नहिं कछु वृथा कहन महिं आये,
कृपा कोर सरसावहु आली!
चहत नयनन नि: सृत धार, दे दे हे लली दीदार।
रत्न हार पहन कुम्भ इव पयोधर,
सुभग किंकिणी राजे सघन जघन पर,
मुखर होई दे दुँदुभि मदनवत्,
हम तुम मिलि सँग महारास करत,
गोपीन्ह साज समाज सब मिलि कै,
नाचि करैं मँगल जय जयकार, दे दे हे लली दीदार।
तामरस लजावत, अति सुखअयनी,
सुभग सरोरुह हे पिकबयनी,
विलासकारिणीम्, हृदयहारिणीम्,
रतिरागसुख अनन्य प्रदायिनीम्,
मोरै तो मन बस इक यहि,
करौं तव चरणन अरुणार, दे दे हे लली दीदार।
कामविषदाहक अमृतस्वरुपा तू,
नवीन पत्रदल अलँकार अनूपा तू,
मदन दाहत विषम करत तन,
चरण सरोज राखिये शीश मम,
अब नहिं सहि जात विरह हे भामिनी,
तव चरणन देवि! सुखसार, दे दे हे लली दीदार।
जो पै कोउ शँक सुभाउ,
तुम सन नहिं कछु मोर दुराउ,
तुम मेरो हिय बसत सुन्दरी,
नहिं कोउ जगत महँ कामेश्वरी,
अनँग देव बसे भले मम अँगन,
आलिंगन लगि करौं मनुहार, दे दे हे लली दीदार।
तिरीछे नयन उरग सम काटत,
अधराधर तव अमृत सरसावत,
तोर मूक बिबिध बिधि त्रासत,
मधुर सँभाषण सँताप नशावत,
नेकु नयन करुणा भरि लाईअ,
लेहु निज नयनन निहार, दे दे हे लली दीदार।
दँत अधर कपोल नयन नासिका,
कामदेव की सुभग बाटिका,
लजावत मनोज शर सँधान,
करहु कृपा हे देवि महान!
तुम सम देवि न जगत कोई सुन्दरी,
सौन्दर्य लावण्य गुण आगार, दे दे हे लली दीदार।
सुनतहिं करुणा वृषभानु लली आयो,
नयन हिय उमड़ि समुँद बनायो,
प्रियतम बदन अँसुवन अन्हवायो,
सुख बहुबिधि प्रियतम सरसायो,
प्रियतम बिना प्रिया जीवन कहा देवि,
'नवीन'अँसुवन बहत निझ^र धार, दे दे हे लली दीदार।
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