हे श्री गुरुदेव प्यारे Poem by Dr. Navin Kumar Upadhyay

हे श्री गुरुदेव प्यारे

हे श्री गुरुदेव प्यारे प्रियतम, झूला विहार दर्शाइये ।
चरण तल लखि लेउँ बलैया, करुणा कृपा बरसाइए ।
बरस बाद आयो सावन मास, पावस ऋतु सुहावनी ।
घन घटा काली कजरारी घिरी, दया विद्युत चमकाइए।
दादुर मोर पपीहा बोलत, कोयल कुहू कुहू धुनि करत ।
दामिनी चहुँ ओर अँजोर करत, श्रीमुख वचन सरसाइए।
आई सब अलियाँ सिया की, षोडश श्रृँगार भरपूर करि 
नयनन कँज कृपा कोर निहारिए, आनँद रस बरसाइए ।
पधराइए श्रीप्रियाप्रियतमजू को, युगल कर कँज धारि कै।
अतरन सेवा अर्पण करि, सुगँधित सुमन माल पहराइए ।
श्रीप्रियाप्रियतमजू पनही चाहत, तव अरुण करकँज युगल।
नवीन कीजिए करकँज सेवा, प्रियाप्रियतम पद पहनाइए । 

Friday, March 24, 2017
Topic(s) of this poem: love
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