वह आज हो गई पूरी, Poem by Dr. Navin Kumar Upadhyay

वह आज हो गई पूरी,

जो चाहे-जिगर थी, वह आज हो गई पूरी,
नहीं अब कोई तमन्ना बची रह गई अधूरी,
मेरी न अब कहीं कोई रह गई मजबूरी,
जब तुम्हारे -हमारे बीच रह गई जब दूरी ।

Monday, November 27, 2017
Topic(s) of this poem: love
COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success