हे प्यारे मनभावन सावन! क्यों तुम अब जाने लगे।
महीने भर दिये उमँग तुमने, यह देश क्यों बेगाने लगे।।
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तुम आये, उल्लास उमड़े, छाई चारों ओर उमँग हरियाली।
सकल चेहरे बने मोदित, सब जगह सुहाने लगने लगे।।
मोर-मोरनी उमँग भर नाचे, पपीहा की पिउ-पिउ पुकार।
विहँग कलरव चहुँ ओर करते, सब लोग चहचहाने लगे।।
झूलन लग गये प्रति तरु डाल, पधार गये प्रियतम समोद।
प्रिया सह झमकि झूला झूले, न कोई भी अनजाने लगे।।
वाद्य-वृन्द गूँज हुई भारी, रमणियों ने सुनाये सावन तान।
नभ में चमक हुई भारी, नव पत्र दल लड़खड़ाने लगे।।
प्रिया-प्रियतम को झूलन झुलाया, सखियों ने आनँद भर।
तुमने रिमझिम बरसात कर दी, झूलन सब दीवाने लगे।
और, अब तुम जाते हो सावन, आओगे एक बरस बाद।
'नवीन''को न भूलना, करके प्यार इजाजत माँगने लगे! ।
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