हे प्यारे मनभावन सावन! Poem by Dr. Navin Kumar Upadhyay

हे प्यारे मनभावन सावन!

हे प्यारे मनभावन सावन! क्यों तुम अब जाने लगे।
महीने भर दिये उमँग तुमने, यह देश क्यों बेगाने लगे।।
'
तुम आये, उल्लास उमड़े, छाई चारों ओर उमँग हरियाली।
सकल चेहरे बने मोदित, सब जगह सुहाने लगने लगे।।
मोर-मोरनी उमँग भर नाचे, पपीहा की पिउ-पिउ पुकार।
विहँग कलरव चहुँ ओर करते, सब लोग चहचहाने लगे।।
झूलन लग गये प्रति तरु डाल, पधार गये प्रियतम समोद।
प्रिया सह झमकि झूला झूले, न कोई भी अनजाने लगे।।
वाद्य-वृन्द गूँज हुई भारी, रमणियों ने सुनाये सावन तान।
नभ में चमक हुई भारी, नव पत्र दल लड़खड़ाने लगे।।
प्रिया-प्रियतम को झूलन झुलाया, सखियों ने आनँद भर।
तुमने रिमझिम बरसात कर दी, झूलन सब दीवाने लगे।
और, अब तुम जाते हो सावन, आओगे एक बरस बाद।
'नवीन''को न भूलना, करके प्यार इजाजत माँगने लगे! ।

Thursday, August 17, 2017
Topic(s) of this poem: religious holiday
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